Siddhartha (Hindi Edition)


ASIN ‏ : ‎ B0B223QT3B
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (23 May 2022)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 890 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 106 pages

Pralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII) (Hindi Edition): Manu Sharma’s Vision of Krishna’s Apocalypse

From the Publisher

Pralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII) by Manu Sharma

Pralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII)  by  Manu SharmaPralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII)  by  Manu Sharma

कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।

भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।मुझे देखना हो तो तूफानी सिंधू की उत्ताल तरंगों में देखो। हिमालय के उत्तुंग शिखर पर मेरी शीतलता का अनुभव करो। सहस्रों सूर्यों का समवेत ताप मेरा ही ताप है। एक साथ सहस्रों ज्वालामुखियों का विस्फोट मेरा ही विस्फोट है। शंकर के तृतीय नेत्र की प्रलयंकर ज्वाला मेरी ही ज्वाला है। शिव का तांडव मैं हूँ; प्रलय में मैं हूँ; लय में मै हूँ; विलय में मैं हूँ। प्रलय के वात्याचक्र का नर्तन मेरा ही नर्तन है। जीवन और मृत्यु मेरा ही विवर्तन है। ब्राह्मांड में मैं हूँ; ब्राह्मांड मुझमें है। संसार की सारी क्रियमाण शक्‍त‌ि मेरी भुजाओं में है। मेरे पगों की गति धरती की गति है। आप किसे शापित करेंगे; मेरे शरीर को ? यह तो शा‌प‌ित है; और जिस दिन मैंने यह शरीर धारणा किया था उसी दिन यह मृत्यु से शाप‌ित हो गया था।कृष्‍ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्‍ण के किसी विशिष्‍ट आयाम को ‌‌ल‌िया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्‍त इस औपन्‍यासिक श्रृंखला ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ में कृष्‍‍ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास ‌‌क‌िया गया है। किसी भी भाषा में कृष्‍‍णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्‍त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्‍‍ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्‍यवाणी दुरभिसंध‌ि द्वारका की स्‍थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
ASIN ‏ : ‎ B07CS77G1J
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 May 2018)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 1984 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled

Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV): Manu Sharma’s Unraveling of Krishna’s Mirage (Hindi Edition)

From the Publisher

Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV)

Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV)Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV)

कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।

भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।मैं नियति के तेज वाहन पर सवार था। सबकुछ मुझसे पीछे छूटता जा रहा था। वृंदावन और मथुरा; राधा और कुब्जा-सबकुछ मार्ग के वृक्ष की तरह छूट गए थे। केवल उनकी स्मृतियाँ मेरे मन से लिपटी रह गई थीं। कभी-कभी वर्तमान की धूल उन्हें ऐसा घेर लेती है कि वे उनसे निकल नहीं पाती थीं। मैं अतीत से कटा हुआ केवल वर्तमान का भोक्‍ता रह जाता।माना कि भविष्‍य कुछ नहीं है; वह वर्तमान की कल्पना है; मेरी अकांक्षाओं का चित्र है—और यह वह है; जिसे मैंने अभी तक पाया नहीं है; इसलिए मैं उसे एक आदर्श मानता हूँ। आदर्श कभी पाया नहीं जाता। जब तक मैँ उसके निकट पहुँचता हूँ; हाथ मारता हूँ तब तक हाथ में आने के पहले ही झटककर और आगे चला जाता है। एक लुभावनी मरीचिका के पीछे दौड़ना भर रह जाता है।कृष्‍ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्‍ण के किसी विशिष्‍ट आयाम को ‌‌ल‌िया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्‍त इस औपन्‍यासिक श्रृंखला ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ में कृष्‍‍ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास ‌‌क‌िया गया है। किसी भी भाषा में कृष्‍‍णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्‍त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्‍‍ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्‍यवाणी दुरभिसंध‌ि द्वारका की स्‍थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
ASIN ‏ : ‎ B07CT1JP7C
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (2 May 2018)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 1425 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled

Ramayan Ke Patra (Hindi Edition)

From the Publisher

Ramayan Ke Patra by Dinkar Joshi

Ramayan Ke Patra by Dinkar JoshiRamayan Ke Patra by Dinkar Joshi

राम ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं; बल्कि पुराणकथा में आलेखित कल्पना-सृष्टि के पात्र हैं;

रामचरित्र को सैकड़ों वर्ष बाद भी करोड़ों व्यक्तियों के हृदय में जो स्थान प्राप्त है; वह अद्भुत है। रामकथा को साहित्य के या अन्य किसी सामान्य मापदंड से मूल्यांकित नहीं किया जा सकता है। तुलसीदास ने तो इस कथा को मात्र ‘रामचरित’ ही नहीं; बल्कि ‘मानस’ भी कहा है। यहाँ मन ही केंद्रस्थान पर है; बुद्धि नहीं। एक चित्र में से प्रकट होता प्रवाह दूसरे चित्र को स्पर्श करे—यह विशेषता है। इसमें बुद्धि के मापदंड कई बार अपर्याप्त सिद्ध हों; ऐसा संभव है। बुद्धि का प्रदेश जहाँ समाप्त होता है; वहाँ से भक्ति का प्रदेश शुरू होता है। राम इस प्रदेश के देवाधिदेव हैं। ऐसे देवाधिदेव का अपने चित्त में उठते प्रश्नों के बावजूद वंदन ही करना चाहिए।राम ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं; बल्कि पुराणकथा में आलेखित कल्पना-सृष्टि के पात्र हैं; ऐसे कुछ बौद्धिक अवश्य कहते हैं। जो ऐतिहासिक तथ्य अकबर अथवा अशोक के विषय में प्राप्त हैं; निरी आँखों से देखे जा सकें और गणित की स्पष्टता से समझे जा सकें; ऐसे साक्ष्य रामकथा के संदर्भ में उपलब्ध नहीं होते। निरी आँख या गणित के सत्य की एक मर्यादा है। इस मर्यादा को मापा जा सके; उतना ही सत्य है; ऐसा कहने में सत्य के विषय में हमारी अज्ञानता प्रकट होती है। जो नाम—उसके आलेखन के हजारों वर्ष बाद भी आज करोड़ों व्यक्तियों के चित्त में प्राण का संचार कर सकता हो—वह नाम एक विशुद्ध काल्पनिक पात्र है; ऐसा कहकर हम महाकाल के प्रति एवं करोड़ों व्यक्तियों की श्रद्धा के साथ अन्याय करते हैं। Customer Reviews 4.2 out of 5 stars 68 4.6 out of 5 stars 168 4.1 out of 5 stars 65 4.7 out of 5 stars 9 4.7 out of 5 stars 5 4.7 out of 5 stars 22 Price ₹131.10₹131.10 ₹266.99₹266.99 ₹308.75₹308.75 — ₹197.60₹197.60 ₹258.40₹258.40
ASIN ‏ : ‎ B071RLBXMP
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (6 January 2020)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 2475 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 175 pages

Ath Shrimahabharat Katha (Hindi Edition)

From the Publisher

Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)

Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)

पुस्तक में दी गई कहानियों का वर्णन एवं घटनाएँ अति रोचक, रोमांचक, जिज्ञासापूर्ण तथा आश्‍चर्यचकित कर देनेवाली हैं।

‘महाभारत’ का संक्षेप इस उपन्यास में होने पर भी मुख्य केंद्र हैं—श्रीकृष्ण, गांधारी। जीवन के मध्या काल में जब श्रीकृष्ण पहली बार राजमाता कुंती से मिलने हस्तिनापुर आए, तब सर्वप्रथम गांधारी से मिले। इस उपन्यास में उनकी चार बार भेंट हुई है। परंतु लगता है कि एक प्रज्ञावती का अस्पर्श मोह श्रीकृष्ण को है तथा एक लोकविलक्षण कर्तृत्व के धनी श्रीकृष्ण का आकर्षण गांधारी को है। दोनों की परस्पर कटुता और आकर्षण भी इस उपन्यास में है। वैसे अनेक प्रश्नों के उत्तर इस दार्शनिक उपन्यास में पाठकों को मिलेंगे ही। उपन्यास तो मैंने लिखा, परंतु धर्मक्षेत्र युद्धक्षेत्र कैसे?इसका उत्तर मुझे नहीं मिला। मन का प्रश्न मन में ही था। 1994 में मेरा नाटक ‘इदं न मम’ के मंचन के दौरान भारत-भ्रमण करते हुए पंजाब में आमंत्रित किया गया था। वहाँ हमें कुरुक्षेत्र के विवेकानंद स्कूल व कॉलेज में भी आमंत्रित किया गया था। अतः हमारी नाटक मंडली कुरुक्षेत्र गई, वहाँ मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया, जो मराठी भाषा में लिखे इस उपन्यास ‘पूर्णविराम’ में है।इसमें ‘राधा’ भी है। अनेक लेखक-कवियों ने इसका वर्णन मधुरा भक्ति के रूप में किया है। परंतु मेरे उपन्यास में राधा है तो बचपन की एक सखी और श्रीकृष्ण से प्रीति करनेवाली कन्या है। श्रीकृष्ण सोलह वर्ष के थे, तब मथुरा गए, पर वहाँ से लौटकर आए ही नहीं। परंतु राधा उनके मन की अधूरी कहानी थी। अन्य लेखकों ने राधा की मृत्यु नहीं दिखाई, परंतु मेरे उपन्यास में वह है।‘महाभारत’ के दशम स्कंध में आराधना करनेवाली किसी स्त्री का वर्णन है। ‘राध्’ धातु से ‘आराधना’ और ‘आराधना’ शब्द से ‘राधा’ शब्द की निर्मिति है। ‘राधा’ कोई भी गोपी हो, परंतु इस उपन्यास में श्रीकृष्ण के मन में नित्य प्रेरक शक्ति राधा रही है और उसकी मृत्यु श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष भेंट होने पर हुई है। कुरुक्षेत्र में जाने से पूर्व वे गंगा-यमुना स्नान के लिए कुंभ पर्व पर जाते हैं, तब उनकी भेंट है।भीष्माचार्य, दुर्योधन, शकुनि, धृतराष्ट्र, कर्ण आदि पात्र इस उपन्यास में अपनी-अपनी भूमिका के साथ आए हैं। वैसे ही राजमाता कुंती, महारानी गांधारी, वृषाली, द्रौपदी, सुकन्या अपनी-अपनी भूमिका लेकर उपन्यास में हैं। Shubhangi BhadbhadeShubhangi Bhadbhade

Shubhangi Bhadbhade

जन्म : 21 दिसंबर, 1942 को बंबई में।शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), साहित्य रत्‍न।सौ. शुभांगी भडभडे मराठी की अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रख्यात साहित्यकार हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक घटना-प्रतिघटनाओं से प्रभावित होकर अपनी खास शैली में लिखनेवालों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।कृतियाँ : ग्यारह चारित्रिक तथा अठारह सामाजिक उपन्यास, पाँच कथा-संग्रह, बारह एकांकी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य के अतिरिक्‍त तीन नाटक और स्तंभ लेखन; साथ ही किशोर साहित्य। दूरदर्शन व आकाशवाणी पर नाटकों का प्रसारण तथा वार्त्ता आदि।सम्मान-पुरस्कार : महाराष्‍ट्र साहित्य सभा का ‘कविता पुरस्कार’, विदर्भ साहित्य संघ का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’, साहित्य अकादमी, बड़ौदा का ‘कथा पुरस्कार’, ‘कै. सुमन देशपांडे बाल साहित्य पुरस्कार’, ‘बाल उपन्यास पुरस्कार’, अ.भा. नाट्य परिषद्, मुंबई का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’ तथा ‘सारांश’ कथा-संग्रह पर महाराष्‍ट्र सरकार का ‘उत्कृष्‍ट वाड‍्मय पुरस्कार’। Add to Cart Customer Reviews 4.2 out of 5 stars 6 — 4.5 out of 5 stars 2 3.1 out of 5 stars 5 4.0 out of 5 stars 2 5.0 out of 5 stars 1 Price ₹260.00₹260.00 ₹51.45₹51.45 ₹247.00₹247.00 ₹162.45₹162.45 ₹80.24₹80.24 ₹141.75₹141.75 अन्य प्रसिद्ध कृतियां। ✓ ✓ ✓ ✓ ✓ Click & Buy
ASIN ‏ : ‎ B09RMX7615
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 February 2021)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 3841 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Not enabled
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Not Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 240 pages

Indian Philosophy Volume 2 Second Edition: With An Introduction By J.N.Mohanty + Indian Philosophy Volume 1 Second Edition: With An Introduction By J.N.Mohanty (Set of 2 Books)

From the Publisher 11

Indian Philosophy Volume 2 Second Edition (Oip)

Rated as classics, these two volumes comprehensively survey Indian thought from the Rig Veda to Ramanuja. They authoritatively showcase ancient philosophical texts and relate them to contemporary issues of philosophy and religion. The first volume focuses on the general characteristics of Indian philosophy and discusses the development of philosophical thought during the Vedic and Epic period while the second discusses the six philosophical systems, the gradual decline of the philosophic spirit, the impact of the West, and the future prospects and possibilities. This second edition, with a new Introduction by eminent philosopher J.N. Mohanty, highlights the continuing relevance of the two volumes and the philosophic tradition they represent both to scholars and serious lay readers.

Genre Philosophy Brand Oxford University Press, Usa Publication Date 2008-09-24t00:00:01z Edition 2 Item Weight 681.0 Grams 22

Indian Philosophy Volume 1 Second Edition (Oip)

Rated as classics, these two volumes comprehensively survey Indian thought from the Rig Veda to Ramanuja. They authoritatively showcase ancient philosophical texts and relate them to contemporary issues of philosophy and religion. The first volume focuses on the general characteristics of Indian philosophy and discusses the development of philosophical thought during the Vedic and Epic period while the second discusses the six philosophical systems, the gradual decline of the philosophic spirit, the impact of the West, and the future prospects and possibilities. This second edition, with a new Introduction by eminent philosopher J.N. Mohanty, highlights the continuing relevance of the two volumes and the philosophic tradition they represent both to scholars and serious lay readers.

Genre Buddhism Format Illustrated Brand Oxford University Press, Usa Publication Date 2008-09-24t00:00:01z Edition 2
ASIN ‏ : ‎ B084ZNGFDP