ALHA-UDAL KI VEERGATHA (Hindi Edition)

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ASIN ‏ : ‎ B07CSB6L9J
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 May 2018)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Ath Shrimahabharat Katha (Hindi Edition)

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Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)

Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)Ath Shrimahabharat Katha by Shubhangi Bhadbhade (Author)

पुस्तक में दी गई कहानियों का वर्णन एवं घटनाएँ अति रोचक, रोमांचक, जिज्ञासापूर्ण तथा आश्‍चर्यचकित कर देनेवाली हैं।

‘महाभारत’ का संक्षेप इस उपन्यास में होने पर भी मुख्य केंद्र हैं—श्रीकृष्ण, गांधारी। जीवन के मध्या काल में जब श्रीकृष्ण पहली बार राजमाता कुंती से मिलने हस्तिनापुर आए, तब सर्वप्रथम गांधारी से मिले। इस उपन्यास में उनकी चार बार भेंट हुई है। परंतु लगता है कि एक प्रज्ञावती का अस्पर्श मोह श्रीकृष्ण को है तथा एक लोकविलक्षण कर्तृत्व के धनी श्रीकृष्ण का आकर्षण गांधारी को है। दोनों की परस्पर कटुता और आकर्षण भी इस उपन्यास में है। वैसे अनेक प्रश्नों के उत्तर इस दार्शनिक उपन्यास में पाठकों को मिलेंगे ही। उपन्यास तो मैंने लिखा, परंतु धर्मक्षेत्र युद्धक्षेत्र कैसे?इसका उत्तर मुझे नहीं मिला। मन का प्रश्न मन में ही था। 1994 में मेरा नाटक ‘इदं न मम’ के मंचन के दौरान भारत-भ्रमण करते हुए पंजाब में आमंत्रित किया गया था। वहाँ हमें कुरुक्षेत्र के विवेकानंद स्कूल व कॉलेज में भी आमंत्रित किया गया था। अतः हमारी नाटक मंडली कुरुक्षेत्र गई, वहाँ मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया, जो मराठी भाषा में लिखे इस उपन्यास ‘पूर्णविराम’ में है।इसमें ‘राधा’ भी है। अनेक लेखक-कवियों ने इसका वर्णन मधुरा भक्ति के रूप में किया है। परंतु मेरे उपन्यास में राधा है तो बचपन की एक सखी और श्रीकृष्ण से प्रीति करनेवाली कन्या है। श्रीकृष्ण सोलह वर्ष के थे, तब मथुरा गए, पर वहाँ से लौटकर आए ही नहीं। परंतु राधा उनके मन की अधूरी कहानी थी। अन्य लेखकों ने राधा की मृत्यु नहीं दिखाई, परंतु मेरे उपन्यास में वह है।‘महाभारत’ के दशम स्कंध में आराधना करनेवाली किसी स्त्री का वर्णन है। ‘राध्’ धातु से ‘आराधना’ और ‘आराधना’ शब्द से ‘राधा’ शब्द की निर्मिति है। ‘राधा’ कोई भी गोपी हो, परंतु इस उपन्यास में श्रीकृष्ण के मन में नित्य प्रेरक शक्ति राधा रही है और उसकी मृत्यु श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष भेंट होने पर हुई है। कुरुक्षेत्र में जाने से पूर्व वे गंगा-यमुना स्नान के लिए कुंभ पर्व पर जाते हैं, तब उनकी भेंट है।भीष्माचार्य, दुर्योधन, शकुनि, धृतराष्ट्र, कर्ण आदि पात्र इस उपन्यास में अपनी-अपनी भूमिका के साथ आए हैं। वैसे ही राजमाता कुंती, महारानी गांधारी, वृषाली, द्रौपदी, सुकन्या अपनी-अपनी भूमिका लेकर उपन्यास में हैं। Shubhangi BhadbhadeShubhangi Bhadbhade

Shubhangi Bhadbhade

जन्म : 21 दिसंबर, 1942 को बंबई में।शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), साहित्य रत्‍न।सौ. शुभांगी भडभडे मराठी की अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रख्यात साहित्यकार हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक घटना-प्रतिघटनाओं से प्रभावित होकर अपनी खास शैली में लिखनेवालों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।कृतियाँ : ग्यारह चारित्रिक तथा अठारह सामाजिक उपन्यास, पाँच कथा-संग्रह, बारह एकांकी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य के अतिरिक्‍त तीन नाटक और स्तंभ लेखन; साथ ही किशोर साहित्य। दूरदर्शन व आकाशवाणी पर नाटकों का प्रसारण तथा वार्त्ता आदि।सम्मान-पुरस्कार : महाराष्‍ट्र साहित्य सभा का ‘कविता पुरस्कार’, विदर्भ साहित्य संघ का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’, साहित्य अकादमी, बड़ौदा का ‘कथा पुरस्कार’, ‘कै. सुमन देशपांडे बाल साहित्य पुरस्कार’, ‘बाल उपन्यास पुरस्कार’, अ.भा. नाट्य परिषद्, मुंबई का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’ तथा ‘सारांश’ कथा-संग्रह पर महाराष्‍ट्र सरकार का ‘उत्कृष्‍ट वाड‍्मय पुरस्कार’। Add to Cart Customer Reviews 4.2 out of 5 stars 6 — 4.5 out of 5 stars 2 3.1 out of 5 stars 5 4.0 out of 5 stars 2 5.0 out of 5 stars 1 Price ₹260.00₹260.00 ₹51.45₹51.45 ₹247.00₹247.00 ₹162.45₹162.45 ₹80.24₹80.24 ₹141.75₹141.75 अन्य प्रसिद्ध कृतियां। ✓ ✓ ✓ ✓ ✓ Click & Buy
ASIN ‏ : ‎ B09RMX7615
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 February 2021)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Print length ‏ : ‎ 240 pages

Devi-Devtaon ki Kahaniyan: Timeless Myths and Legends of Hindu Mythology (Hindi Edition)

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Devi-Devtaon ke Rahasya by Devdutt Pattnaik

Devi-Devtaon ki KahaniyanDevi-Devtaon ki Kahaniyan

हिंदुओं की आस्था के केंद्रबिंदु देवी-देवताओं के चित्रों के माध्यम से धार्मिक नवजागरण का मार्ग प्रशस्त करती एक पठनीय पुस्तक।

हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की बहुत मान्यता है। घर-घर में अनेक देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना अपूर्व श्रद्धा; आस्था; प्रेम और विधि-विधान से की जाती है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता भी है कि इन देवी-देवताओं की संख्या करोड़ों में है। इनके प्रति असीम भक्ति और मान्यताओं ने ही इनकी अनेक कथाओं को जन्म दिया। रामायण; गीता; उपनिषद आदि अनेक ग्रंथ और पुराणों में इन्हीं वंदनीय देवी-देवताओं की रोचक एवं मनोरंजक कथाएँ प्रचलित हैं। प्रस्तुत पुस्तक पुराणों तथा अन्य हिंदू वाङ्मय-गं्रथों से चुनी गई ऐसी श्रेष्ठ कथाओं का संग्रह है; जो अनेक देवी-देवताओं के रहस्यमयी जीवन की घटनाओं को उजागर करती हैं। अपने धर्म के प्रति आस्था जाग्रत् करने और इष्टदेवी-देवताओं के प्रति भक्ति में तल्लीन होने का संदेश देती पठनीय पुस्तक।

अनुक्रम

अपनी बातसमुद्र—मंथन की कथाइंद्र और नमुचि की कथागायों की मुक्तिमधु-विद्या का रहस्यअगस्त ऋषि का शापत्रिपुरासुर संहार कथादरिद्रता का कोपकालयवन वधशिव की महिमाभगवान विष्णु की आराधनाभक्ति की सामर्थ्यमायापति की मायाशंकर के अंशभक्त की पुकारभगवान कृष्ण की मायासूर्य देव का विवाहमहिषासुर की कथाशिव का वरदानमाँ दुर्गा की कथा

भगवान विष्णु

भगवान विष्णु

चक्रवर्ती सम्राट

चक्रवर्ती सम्राट

महर्षि

महर्षि देवेंद्र ने उनसे कहा, “हे अंतर्यामी! आपसे कुछ छुपा नहीं है

भगवान विष्णु कुछ देर मौन रहे, फिर बोले, “मेरी बात ध्यान से सुनो, तभी तुम्हारा कल्याण सुनिश्चित है। तुम्हारे शत्रुओं ने तुम पर विजय प्राप्त कर ली है, इसलिए अभी तुम्हें उनके साथ संधि कर लेनी चाहिए।”

“परंतु देव, हम संधि कैसे करें?” देवेंद्र बोले, “असुर तो हर अवसर पर हमारी दशा से लाभ उठाते हैं। वे हमसे बुरा व्यवहार करते हैं।”

“समय पड़ने पर चूहे और साँप में भी मैत्री हो जाती है।” भगवान विष्णु ने कहा, “इसलिए इस समय असुरों से मित्रता कर लेना ही तुम्हारे हित में है।”

“किंतु भगवन्! हम उनके पास जाने से डरते हैं।” इंद्र बोले।

“तभी तो मैं कहता हूँ कि पहले उनसे संधि करो, उसके बाद समुद्र-मंथन कर अमृत प्राप्त करने का प्रयत्न करो।” भगवान विष्णु ने कहा, “तुम अमृत प्राप्त करने में उन्हीं असुरों की सहायता लो। एक बार यदि तुम लोग अमृत पी लोगे तो फिर तुम्हें उनसे कोई भय नहीं रहेगा।”

"इंद्रलोक का राजकाज चलाने के लिए किसी समर्थ, योग्य और अनुभवी राजा को ही इस पद पर बैठाया जाए।

सबकी सहमति होने पर नहुष को इंद्र की पदवी देकर इंद्रासन सौंप दिया गया। नहुष ने बड़ी कुशलता से राज-काज सँभाल लिया। इंद्रलोक का वैभव देखकर उन्होंने सोचा कि ऐसा सुख और वैभव भूलोक के राजाओं को कहाँ। सचमुच इंद्र होना कितने वैभव और संपदा का स्वामी होना होता है। इसके आगे तो मेरे भूलोक का राज एक दरिद्र का राज लगता है।

इंद्रलोक की चकाचौंध में नहुष अपने कर्त्तव्य पर उतना ध्यान न देकर सुख-वैभव भोगने के बारे में ज्यादा सोचने लगे। उन्होंने यह नहीं सोचा कि वे अस्थायी रूप से इंद्र-पद पर बैठाए गए हैं, बल्कि वे अब अपने को सचमुच का इंद्र समझने लगे। जब वे इंद्र बन गए तो इंद्राणी भी उनकी होनी चाहिए, ऐसा विचार उनके मन में पैदा हुआ।

दरिद्रता के इस अभिशाप ने समाज में उनका सम्मान भी नष्ट कर दिया है।

महर्षि ने क्षुधा की पीड़ा उसके नेत्रों में देखी। भूख के मारे उसके नेत्र अंदर गड़ गए थे। उन्होंने एक दृष्टि उसकी काया पर डाली। पेट पीठ से लग गया था, कँधे झुक गए थे। चलने-फिरने की शक्ति समाप्त हो गई थी। भूख-प्यास ने सब कुछ नष्ट कर दिया था।

ऋषि ने यह अनुभव किया कि दरिद्रता के भय से साथियों ने मुख मोड़ लिया है। पक्षियों ने आश्रम त्याग दिया है। अब कहीं भी उसका कलरव सुनाई नहीं देता। आश्रम के सभी पशु-पक्षी भी धीरे-धीरे उनसे किनारा कर गए हैं। किंतु अग्नि को साक्षी मानकर साथ रहने की प्रतिज्ञा करने वाली पत्नी ने उनका साथ नहीं छोड़ा।

Customer Reviews 3.9 out of 5 stars 24 4.3 out of 5 stars 1,645 4.2 out of 5 stars 55 — 3.4 out of 5 stars 4 Price ₹110.00₹110.00 ₹61.95₹61.95 ₹135.95₹135.95 — ₹62.54₹62.54
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Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 February 2021)
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Dharmorakshati (Hindi Edition)

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Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (5 March 2022)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Dwarka Ki Sthapana (Krishna Ki Atmakatha Vol. III): Manu Sharma’s Chronicle of Dwarka’s Founding (Hindi Edition)

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Dwarka Ki Sthapana (Krishna Ki Atmakatha Vol. III)

Dwarka Ki Sthapana (Krishna Ki Atmakatha Vol. III)Dwarka Ki Sthapana (Krishna Ki Atmakatha Vol. III)

कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।

भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।मैंने जीवन भर कभी तर्क में विश्‍वास नहीं किया; क्योंकि तर्क अपने विरुद्ध स्वयं खड़ा हो जाता है। वह मानव बुद्धि का परम चतुर किंतु आदर्शहीन शिशु है। उसका जन्म भी उस समय हुआ था जब सत्य और झूठ की पहली लड़ाई हुई थी। तब से वह झूठ का ही प्रवक्‍ता रहा है। कभी-कभी वह सत्य के पक्ष में भी खड़ा हो जाता है। केवल इसलिए कि वह सत्य से प्रतिष्‍ठा पाता है और झूठ से जीवन रस।वस्तुत: सत्य को उसकी आवश्यकता भी नहीं है; सत्य तो स्‍वयं भाष‌ित है; स्वयं प्रमाण है। कभी-कभी वह बादलों के घेरे में आ जाता है; तब हम उसे छिपता हुआ देखते हैं। वास्तव में यह हमारा दृष्‍ट‌ि भ्रम है। बादलों के छँटते ही उसकी ज्योति अपने स्‍थान पर स्वतः चमकती दिखाई देने लगती है। कृष्‍ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्‍ण के किसी विशिष्‍ट आयाम को ‌‌ल‌िया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्‍त इस औपन्‍यासिक श्रृंखला ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ में कृष्‍‍ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास ‌‌क‌िया गया है। किसी भी भाषा में कृष्‍‍णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्‍त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्‍ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्‍‍ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्‍यवाणी दुरभिसंध‌ि द्वारका की स्‍थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 86 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹29.50₹29.50 ₹27.49₹27.49 ₹29.50₹29.50 ₹29.50₹29.50
ASIN ‏ : ‎ B07CSVWFH3
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (27 February 2021)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Indian Philosophy Volume 2 Second Edition: With An Introduction By J.N.Mohanty + Indian Philosophy Volume 1 Second Edition: With An Introduction By J.N.Mohanty (Set of 2 Books)

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Indian Philosophy Volume 2 Second Edition (Oip)

Rated as classics, these two volumes comprehensively survey Indian thought from the Rig Veda to Ramanuja. They authoritatively showcase ancient philosophical texts and relate them to contemporary issues of philosophy and religion. The first volume focuses on the general characteristics of Indian philosophy and discusses the development of philosophical thought during the Vedic and Epic period while the second discusses the six philosophical systems, the gradual decline of the philosophic spirit, the impact of the West, and the future prospects and possibilities. This second edition, with a new Introduction by eminent philosopher J.N. Mohanty, highlights the continuing relevance of the two volumes and the philosophic tradition they represent both to scholars and serious lay readers.

Genre Philosophy Brand Oxford University Press, Usa Publication Date 2008-09-24t00:00:01z Edition 2 Item Weight 681.0 Grams 22

Indian Philosophy Volume 1 Second Edition (Oip)

Rated as classics, these two volumes comprehensively survey Indian thought from the Rig Veda to Ramanuja. They authoritatively showcase ancient philosophical texts and relate them to contemporary issues of philosophy and religion. The first volume focuses on the general characteristics of Indian philosophy and discusses the development of philosophical thought during the Vedic and Epic period while the second discusses the six philosophical systems, the gradual decline of the philosophic spirit, the impact of the West, and the future prospects and possibilities. This second edition, with a new Introduction by eminent philosopher J.N. Mohanty, highlights the continuing relevance of the two volumes and the philosophic tradition they represent both to scholars and serious lay readers.

Genre Buddhism Format Illustrated Brand Oxford University Press, Usa Publication Date 2008-09-24t00:00:01z Edition 2
ASIN ‏ : ‎ B084ZNGFDP

Jagadguru Shri Shankaracharya (Hindi Edition)

From the Publisher 97893518679139789351867913 97893518679139789351867913 97893518679139789351867913
ASIN ‏ : ‎ B0722HMJZF
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 January 2017)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Print length ‏ : ‎ 112 pages