Siddha Sant Aur Yogi: Journeying with Enlightened Sages and Yogis by Shambhuratna Tripathi (Hindi Edition)
Siddha Sant Aur Yogi
संत परंपरा ही संपूर्ण विश्व को तमाम विघ्न-कष्टों से बचाकर वास्तविक विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है।
योगी का जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण होता है। वे अपना जीवन सैकड़ों वर्ष तक बनाए रख सकते हैं। परकायाप्रवेश द्वारा शरीर बदल सकते हैं, चिरयुवा रह सकते हैं और इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं। जीवित को मृत कर सकते हैं और मृत को जीवित कर सकते हैं। बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री बंकिमचंद्र चटर्जी के पिता श्री यादवचंद्र चटर्जी की मृत्यु कई बार हुई थी। जब वह श्मशान घाट ले जाए जाते थे, तो वहाँ एक महात्मा आविर्भूत होकर उनको पुनर्जीवन प्रदान कर देते थे। डॉ. अलेक्जेंडर कैनन को एक तिब्बती लामा ने तिब्बत आने का निमंत्रण दिया। वह अपने एक साधु मित्र के साथ तिब्बत पहुँचे। लामा के मंदिर के पहले एक चौड़ी, गहरी खाई थी, जिसे पार करना कठिन था। लामा ने अपने मंदिर में बैठे ही इनकी समस्या जान ली। उसने इनके पास एक दूत भेज दिया। इस दूत ने कुछ क्षण एक योग क्रिया दिखाई। उसके करने पर डॉ. कैनन और साधु खाई पार कर गए। जब वे लामा के पास पहुँचे, तो कफन में लपेटा हुआ एक मृत मनुष्य उनके सामने लाया गया। डॉक्टर साहब को उसकी परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि वह पूर्ण रूप से मृत व्यक्ति है। लामा के आदेश से व्यक्ति ने आँखें खोल दीं, उठकर खड़ा हो गया, लामा के पास चलकर गया और फिर मृत हो गया। लामा ने बताया कि यह मनुष्य सात वर्ष से मरा हुआ है और अभी सात वर्ष तक इसी प्रकार सुरक्षित मृतावस्था में रह सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवित किया जा सकता है। आश्चर्य की बात यह थी कि यह वही व्यक्ति था, जिसने लामा के दूत के रूप में डॉ. कैनन को योगक्रिया द्वारा खाई पार कराई थी।प्रसिद्ध योगी स्वामी रामजी ने लेखक को बताया था कि एक लामा ने उनके समक्ष ब्लेड से एक चींटे के तीन टुकड़े कर दिए और तीनों टुकड़े दूर-दूर रख दिए। बाद में मंत्र-शक्ति के बल से तीनों टुकड़े पास-पास आकर जुड़ गए और चींटा जीवित हो गया। उन्होंने योगियों की इच्छा-मृत्यु के भी कई अनुभव बताए थे। एक योगी ने पद्मासन की मुद्रा में अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिए और बिना किसी की सहायता के उनका शव उठकर गंगाजी की धारा में प्रवाहित हो गया था। अधिकांश योगी अपनी मृत्यु-तिथि और समय पहले से घोषित कर देते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस और विवेकानंदजी ने अपनी मृत्यु का समय पंचांग देखकर निश्चित किया था।सिद्ध योगियों का भौतिक शरीर अवश्य नष्ट हो जाता है; लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर से वे सदा विद्यमान रहते हैं तथा आवश्यकतानुसार भक्तों के समक्ष शरीर धारण करके प्रकट हो जाते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस देहावसान के बाद विवेकानंदजी, माँ शारदा तथा अन्य भक्तों के समक्ष प्रकट हुए थे। योगानंदजी के दिवंगत गुरु श्री युक्तेश्वरजी बंबई के एक होटल के कक्ष में प्रकट हो गए थे।
अनुक्रम
प्रस्तावना
जगद्गुरु शंकराचार्य (684-716 ई.)
गुरु नानक देव (1469-1539 ई.)
श्रीचंद्र महाराज (1494-1646 ई.)
संत ज्ञानेश्वर (1275-1296 ई.)
तैलंग स्वामी (1607-1887 ई.)
परमहंस रामकृष्ण देव (1836-1896 ई.)
स्वामी भास्करानंद (1833-1899 ई.)
मदाम ब्लावतस्की (1831-1891 ई.)
शिरडी के साईं बाबा (1856-1918 ई.)
स्वामी विशुद्धानंद (1853-1937 ई.)
गजानन महाराज (अज्ञात—1910 ई.)
नागा महाराज (अज्ञात—1936 ई.)
योगी गंभीरनाथ (अज्ञात—1918 ई.)
एनी बेसेंट (1847-1933 ई.)
माँ सारदा (1853-1920 ई.)
स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.)
स्वामी पुरुषोत्तमानंद (1879-1961 ई.)
स्वामी शिवानंद (1887-1963 ई.)
महर्षि रमण (1879-1950 ई.)
संत जलाराम (1856-1880 ई.)
स्वामी युक्तेश्वर गिरि (1885-1936 ई.)
उड़िया बाबा (1875-1948 ई.)
परमहंस योगानंद (1893-1952 ई.)
मेहेरबाबा (1894-1969 ई.)
श्रीमाँ (1878-1973 ई.)
माँ आनंदमयी (1896-1982 ई.)
गोपीनाथ कविराज (1887-1976 ई.)
बाबा नीमकरौली महाराज (अज्ञात—1973 ई.)
बाबा श्री सीतारामदास ओंकारनाथ (1892-1982 ई.)
बाबा राममंगलदास (1893-1984 ई.)
प्रभुपाद स्वामी भक्तिवेदांत (1896-1972 ई.)
सिद्ध योगी स्वामी राम (1925 ई.-1996 ई.)
देवरहा बाबा (अज्ञात 1990 ई.)
श्री सत् साईं बाबा (1926-2011 ई.)
महर्षि महेश योगी (1921-2008 ई.)
स्वामी सत्यानंद (1923-2009 ई.)
ध्यान-योग-चिकित्सक पांडेय दादा (1910-1992 ई.)
नारायण दास (बैकल बाबा) (अज्ञात-2001)
परिशिष्ट स्मरामि पुनः-पुनः
Shambhuratna Tripathi
शम्भूरत्न त्रिपाठी भारतीय संस्कृति, समाज शास्त्र, नृतत्त्वशास्त्र, गांधीवाद, योग-अध्यात्म, साहित्यिक अनुसंधान और समीक्षा के सुपरिचित रचनाकार थे। विविध विषयों पर उनके पचास से अधिक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अनेक पत्रों व साहित्यिक ग्रंथमालाओं का संपादन किया और वैचारिक, दार्शनिक ग्रंथों का अनुवाद भी। उनके ग्यारह अकादमिक ग्रंथ सरकार द्वारा पुरस्कृत हुए हैं, जिन्हें विभिन्न विश्व-विद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में स्थान दिया है। पी-एच.डी. और डी.लिट. के बीसीयों छात्रों ने उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर साहित्यिक क्षेत्र में अपना मौलिक योगदान दिया। भारत सरकार के पारिभाषिक शब्दावली आयोग के सलाहकार समिति के सदस्य रहे। साप्ताहिक पत्रिका ‘मनु’ और ‘कंचनप्रभा’ मासिक के संपादक भी रहे। स्मृतिशेष : 10 अक्तूबर, 1988
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ASIN : B09CNZQP5D
Publisher : Prabhat Prakashan (15 August 2021)
Language : Hindi
File size : 1609 KB
Text-to-Speech : Enabled
Screen Reader : Supported
Enhanced typesetting : Enabled
Word Wise : Not Enabled
Print length : 477 pages