Untold Secrets of Lord Krishna’s Sudarshan Chakra #shorts #hindu #lordkrishna #mahabharata #krishna
Rajsooya Yajna (Krishna Ki Atmakatha Vol. VI): Manu Sharma’s Journey Through Krishna’s Ascendancy (Hindi Edition)
Rajsooya Yajna (Krishna Ki Atmakatha Vol. VI)
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।राजसूय यज्ञ मेरी मनुजात की वास्तविकता पर जब चमत्कारों का कुहासा छा जाता है तब लोग मुझमें ईश्वरत्व की तलाश में लग जाता हूँ। शिशुपाल वध के समय भी मेरी मानसिकता कुछ ऐसे ही भ्रम में पड़ गई थी; पर ज उसके रक्त के प्रवाह में मुझे अपना ही रक्त दिखाई पड़ा तब मेरी यह मानसिकता धुल चुकी थी। उसका अहं अदृश्य हो चुका था। मेरा वह साहस छूट चुका था कि मैं यह कहूँ कि मैंने इसे मारा है। अब मैं कहता हूँ कि वह मेरे द्वारा मारा गया है। मारनेवाला तो कोई और था। वस्तुत: उसके कर्मों ने ही उसे मारा। वह अपने शापों से मारा गया।संसार में सारे शापों से मुक्त होने का कोइ्र-न-कोई प्रायश्चित्त है; पर जब अपने कर्म ही शापित करते हैं तब उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं।आखिर वह मेरा भाई था। मैं उसे शापमुक्त भी नहीं करा पया। मेरा ईश्वरत्व उस समय कितना सारहीन; अस्तित्वविहीन; निरुपाय और असमर्थ लगा! कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है।‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 64 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
ASIN : B07CVYRZZT
Publisher : Prabhat Prakashan (5 May 2018)
Language : Hindi
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The Bhagavad-Gita: Krishna’s Counsel in Time of War
ASIN : B000FC1MP0
Publisher : Bantam Classics; Reissue edition (1 June 2004)
Language : English
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Print length : 176 pages
Page numbers source ISBN : 0553213652
Khandavdah (Krishna Ki Atmakatha Vol. V): Manu Sharma’s Exploration of Lord Krishna’s Epic Tales (Hindi Edition)
Khandavdah (Krishna Ki Atmakatha Vol. V) by Manu Sharma
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।
जीवन को मैंने उसकी समग्रता में जीया है। न मैंने लोभ को छोड़ा; न मोह को; न काम को; न क्रोध को; न मद को ; न मत्सर को। शास्त्रों में जिनके लिए वर्जना थी; वे भी मेरे लिए वर्जित नहीं रहे। सब वंशी की तरह मेरे साथ लगे रहे। यदि इन्हें मैं छोड़ देता तो जीवन एकांगी को जाता। तब मैं यह नहीं कह पाता कि करील के कुंजों में राम रचानेवाला मैं ही हूँ और व्रज के जंगलों में गायें चरानेवाला भी मैं ही हूँ। चाणूर आदि का वधक भी मैं ही हूँ और कालिया का नाथक भी मैं ही हूँ। मेरी एक मुट्ठी में योग है और दूसरी में भोग। मैं रथी भी हूँ और सारथि भी। अर्जुन के मोह में मैं ही था और उसकी मोह-मुक्ति में भी मैं ही था। जब मेघ दहाड़ते रहे; यमुना हाहाकार करती रही और तांडव करती प्रकृति की विभीषिका किसीको कँपा देने के लिए काफी थी; तब भी मैं अपने पूज्य पिता की गोद में किलकारी भरता रहा। तब से नियति न मुझपर पूरी तरह सदय रही; न पूरी तरह निर्दय। मेरे निकट आया हर हर्ष एक संघर्ष के साथ था। कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है। यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय
Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 64 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82ASIN : B07CVH7JD1
Publisher : Prabhat Prakashan (4 May 2018)
Language : Hindi
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Sangharsh (Krishna Ki Atmakatha Vol. VII): Manu Sharma’s Narration of Krishna’s Struggles (Hindi Edition)
Sangharsh (Krishna Ki Atmakatha - Vol. 7) by Manu Sharma
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।
नियति ने हमेशा मुझपर युद्ध थोपा—जन्म से लेकर जीवन के अंत तक। यद्यपि मेरी मानसिकता सदा युद्ध-विरोधी रही; फिर भी मैंने उन युद्धों का स्वागत किया। उनसे घृणा करते हुए भी मैंने उन्हें गले लगाया। मूलतः मैं युद्धवादी नहीं था। जब से मनुष्य पैदा हुआ तब से युद्ध पैदा हुआ—और शांति की ललक भी। यह ललक ही उसके जीवन का सहारा बनी। इस शांति की ललक की हरियाली के गर्भ में सोए हुए ज्वालामुखी की तरह युद्ध सुलगता रहा और बीच-बीच में भड़कता रहा। यही मानव सभ्यता के विकास की नियति बन गया। लोगों ने मेरे युद्धवादी होने का प्रचार भी किया; पर मैंने कोई परवाह नहीं की, क्योंकि मेरी धारणा थी—और है कि मानव का एक वर्ग वह, जो वैमनस्य एवं ईर्ष्या-द्वेष के वशीभूत होकर घृणा और हिंसा का जाल बुनता रहा—युद्धक है वह, युद्धवादी है वह । पर जो उस जाल को छिन्न-भिन्न करने के लिए तलवार उठाता रहा, वह कदापि युद्धवादी नहीं है, युद्धक नहीं है। और यही जीवन भर मैं करता रहा। कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है। यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय.
Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 64 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82ASIN : B07CSZBVBH
Publisher : Prabhat Prakashan (2 May 2018)
Language : Hindi
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Print length : 400 pages
NARAD KI BHAVISHYAVANI (KRISHNA KI ATMAKATHA): A Glimpse into Narada’s Prophecies and Lord Krishna’s Autobiography by MANU SHARMA (Hindi Edition)
NARAD KI BHAVISHYAVANI (KRISHNA KI ATMAKATHA VOL. I) by MANU SHARMA
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी। भगवान् श्रीकृष्ण ने अवतरित होकर न केवल दुष्ट राजाओं; राक्षसों और अधर्म का नाश किया; वरन् संतजनों; प्रिय भक्तों और सामान्य प्रजाजनों का उद्धार किया। युद्धस्थल में मोहग्रस्त एवं भ्रमित अर्जुन से ही मैंने नहीं कहा था कि तुम निमित्त मात्र हो वरन् इस पुस्तक के लेखक से भी कहा है कि तुम निमित्त मात्र हो; कर्ता तो मैं हूँ।… अन्यथा तुम आज की आँखों से उस अतीत को कैसे देख सकोगे; जिसे मैंने भोगा? उस संत्रास का कैसे अनुभव करोगे; जिसे मेरे युग ने झेला है? उस मथुरा को कैसे समझ सकोगे; जो मेरे अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर केवल एक पैरे से चली है?... और दुःखी व्रज के उसव प्रेमोन्माद का तुम्हें क्या आभास लगेगा; जो मेरे वियोग में आकाश के जलते चंद्र को आँचल में छिपाकर करील के कुंजों में विरहाग्नि बिखेर रहा था? कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है। यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
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Publisher : Prabhat Prakashan (5 May 2018)
Language : Hindi
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Print length : 339 pages
Pralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII) (Hindi Edition): Manu Sharma’s Vision of Krishna’s Apocalypse
Pralaya (Krishna Ki Atmakatha Vol. VIII) by Manu Sharma
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।मुझे देखना हो तो तूफानी सिंधू की उत्ताल तरंगों में देखो। हिमालय के उत्तुंग शिखर पर मेरी शीतलता का अनुभव करो। सहस्रों सूर्यों का समवेत ताप मेरा ही ताप है। एक साथ सहस्रों ज्वालामुखियों का विस्फोट मेरा ही विस्फोट है। शंकर के तृतीय नेत्र की प्रलयंकर ज्वाला मेरी ही ज्वाला है। शिव का तांडव मैं हूँ; प्रलय में मैं हूँ; लय में मै हूँ; विलय में मैं हूँ। प्रलय के वात्याचक्र का नर्तन मेरा ही नर्तन है। जीवन और मृत्यु मेरा ही विवर्तन है। ब्राह्मांड में मैं हूँ; ब्राह्मांड मुझमें है। संसार की सारी क्रियमाण शक्ति मेरी भुजाओं में है। मेरे पगों की गति धरती की गति है। आप किसे शापित करेंगे; मेरे शरीर को ? यह तो शापित है; और जिस दिन मैंने यह शरीर धारणा किया था उसी दिन यह मृत्यु से शापित हो गया था।कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
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Publisher : Prabhat Prakashan (1 May 2018)
Language : Hindi
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Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV): Manu Sharma’s Unraveling of Krishna’s Mirage (Hindi Edition)
Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha Vol. IV)
कर्म; भक्ति; नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था; जब यहाँ पर अन्याय; अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों; ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी।मैं नियति के तेज वाहन पर सवार था। सबकुछ मुझसे पीछे छूटता जा रहा था। वृंदावन और मथुरा; राधा और कुब्जा-सबकुछ मार्ग के वृक्ष की तरह छूट गए थे। केवल उनकी स्मृतियाँ मेरे मन से लिपटी रह गई थीं। कभी-कभी वर्तमान की धूल उन्हें ऐसा घेर लेती है कि वे उनसे निकल नहीं पाती थीं। मैं अतीत से कटा हुआ केवल वर्तमान का भोक्ता रह जाता।माना कि भविष्य कुछ नहीं है; वह वर्तमान की कल्पना है; मेरी अकांक्षाओं का चित्र है—और यह वह है; जिसे मैंने अभी तक पाया नहीं है; इसलिए मैं उसे एक आदर्श मानता हूँ। आदर्श कभी पाया नहीं जाता। जब तक मैँ उसके निकट पहुँचता हूँ; हाथ मारता हूँ तब तक हाथ में आने के पहले ही झटककर और आगे चला जाता है। एक लुभावनी मरीचिका के पीछे दौड़ना भर रह जाता है।कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय Customer Reviews 4.5 out of 5 stars 62 4.6 out of 5 stars 87 4.4 out of 5 stars 73 4.3 out of 5 stars 70 4.5 out of 5 stars 132 Price ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹27.49₹27.49 ₹57.82₹57.82 ₹57.82₹57.82
ASIN : B07CT1JP7C
Publisher : Prabhat Prakashan (2 May 2018)
Language : Hindi
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RUKMINI: KRISHNA’S WIFE
ASIN : B08Z75MW3T
Publisher : Rupa Publications India (7 April 2021)
Language : English
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Print length : 254 pages
Page numbers source ISBN : 9390356083