Patanjali Yoga Sootra (Hindi Edition)


ASIN ‏ : ‎ B0BNXKYVXY
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (3 December 2022)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Patanjali Yog Sutra (Hindi)

From the Publisher

Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger

Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger

योग दर्शनकार पतंजलि ने आत्मा और जगत् के संबंध में सांख्य दर्शन के सिद्धांतों का ही प्रतिपादन और समर्थन किया है

योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। यह छः दर्शनों में से एक शास्त्र है और योगशास्त्र का एक ग्रंथ है। योगसूत्रों की रचना ३००० साल के पहले पतंजलि ने की। इसके लिए पहले से इस विषय में विद्यमान सामग्री का भी इसमें उपयोग किया। योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना ही योग है। अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है।योगसूत्र मध्यकाल में सर्वाधिक अनूदित किया गया प्राचीन भारतीय ग्रन्थ है, जिसका लगभग ४० भारतीय भाषाओं तथा दो विदेशी भाषाओं (प्राचीन जावा भाषा एवं अरबी में अनुवाद हुआ। यह ग्रंथ १२वीं से १९वीं शताब्दी तक मुख्यधारा से लुप्तप्राय हो गया था किन्तु १९वीं-२०वीं-२१वीं शताब्दी में पुनः प्रचलन में आ गया है।पतंजलि का योगदर्शन, समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य इन चार पादों या भागों में विभक्त है। समाधिपाद में यह बतलाया गया है कि योग के उद्देश्य और लक्षण क्या हैं और उसका साधन किस प्रकार होता है। साधनपाद में क्लेश, कर्मविपाक और कर्मफल आदि का विवेचन है। विभूतिपाद में यह बतलाया गया है कि योग के अंग क्या हैं, उसका परिणाम क्या होता है और उसके द्वारा अणिमा, महिमा आदि सिद्धियों की किस प्रकार प्राप्ति होती है। कैवल्यपाद में कैवल्य या मोक्ष का विवेचन किया गया है। संक्षेप में योग दर्शन का मत यह है कि मनुष्य को अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश ये पाँच प्रकार के क्लेश होते हैं, और उसे कर्म के फलों के अनुसार जन्म लेकर आयु व्यतीत करनी पड़ती है तथा भोग भोगना पड़ता है। पतंजलि ने इन सबसे बचने और मोक्ष प्राप्त करने का उपाय योग बतलाया है और कहा है कि क्रमशः योग के अंगों का साधन करते हुए मनुष्य सिद्ध हो जाता है और अंत में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ईश्वर के संबंध में पतंजलि का मत है कि वह नित्यमुक्त, एक, अद्वितीय और तीनों कालों से अतीत है और देवताओं तथा ऋषियों आदि को उसी से ज्ञान प्राप्त होता है। योगदर्शन में संसार को दुःखमय और हेय माना गया है। पुरुष या जीवात्मा के मोक्ष के लिये वे योग को ही एकमात्र उपाय मानते हैं।पतंजलि ने चित्त की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, निरुद्ध और एकाग्र ये पाँच प्रकार की वृत्तियाँ मानी है, जिनका नाम उन्होंने 'चित्तभूमि' रखा है। उन्होंने कहा है कि आरंभ की तीन चित्तभूमियों में योग नहीं हो सकता, केवल अंतिम दो में हो सकता है। इन दो भूमियों में संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात ये दो प्रकार के योग हो सकते हैं। जिस अवस्था में ध्येय का रूप प्रत्यक्ष रहता हो, उसे संप्रज्ञात कहते हैं। यह योग पाँँच प्रकार के क्लेशों का नाश करनेवाला है। असंप्रज्ञात उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें किसी प्रकार की वृत्ति का उदय नहीं होता अर्थात् ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नहीं रह जाता, संस्कारमात्र बच रहता है। यही योग की चरम भूमि मानी जाती है और इसकी सिद्धि हो जाने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

अनुक्रम

निदेशक की कलम से...स्तुतिव्यास ऋषि की स्तुतिप्रस्तावनायुवाओं के लिए दो शब्दयोग दर्शन के चार पादों (अध्यायों) का संक्षिप्त परिचयसमाधि पादसाधन पादविभूति पादकैवल्य पादपुष्पिका॥ समाधि पादः॥॥ साधन पादः॥॥ विभूति पादः॥॥ कैवल्य पादः॥Notes
ASIN ‏ : ‎ B01N21CYGS
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (6 March 2016)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Print length ‏ : ‎ 108 pages

Patanjali Yog Darshan (Hindi Edition)

From the Publisher 93901014849390101484 97893901014819789390101481 97893901014819789390101481 97893901014819789390101481
ASIN ‏ : ‎ B07DC9FV15
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (1 January 2018)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Light on the Yoga Sutras of Patanjali


ASIN ‏ : ‎ B008CBDJ7U
Publisher ‏ : ‎ Thorsons; New edition (28 June 2012)
Language ‏ : ‎ English
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Print length ‏ : ‎ 530 pages

Demystifying Patanjali: The Yoga Sutras (Aphorisms): The Wisdom of Paramhansa Yogananda Presented by his direct disciple, Swami Kriyananda: The Wisdom … by his Direct Disciple, Swami Kriyananda


ASIN ‏ : ‎ B00KHBF9SU
Publisher ‏ : ‎ Crystal Clarity Publishers (3 June 2013)
Language ‏ : ‎ English
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Print length ‏ : ‎ 196 pages