BHARATIYA SANSKRITI KE RAKSHAK SANT: The Crusaders of Indian Culture – A Book on Indian Saints by JUSTICE SHAMBHU NATH SRIVASTAVA (Hindi Edition)

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BHARATIYA SANSKRITI KE RAKSHAK SANT (Hindi) by JUSTICE SHAMBHU NATH SRIVASTAVA

BHARATIYA SANSKRITI KE RAKSHAK SANT (Hindi) by JUSTICE SHAMBHU NATH SRIVASTAVABHARATIYA SANSKRITI KE RAKSHAK SANT (Hindi) by JUSTICE SHAMBHU NATH SRIVASTAVA

प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे स्वनामधन्य पूज्यपाद संतों व उनके जीवन चरित का उल्लेख किया गया है, जिनके कारण भारतीय संस्कृति आज भी संरक्षित है।

सनातन भारतीय संस्कृति सृष्टि के आदिकाल से ही अपने चिरंतन मानवीय मूल्यों के साथ प्रवाहित रहती है। विश्व के अधिकांश देशों में जहाँ इसलाम पहुँचा, वहाँ के निवासी मुसलिम बना दिए गए। भारत में 712 ई. से सत्रहवीं शताब्दी तक इसलाम का शासन विभिन्न क्षेत्रों में था, परंतु 1000 वर्ष के इस विदेशी मुसलिम शासन काल में भारतीय जनमानस पर विदेशी आक्रमण की समस्त क्रूर विद्रूपताओं के बावजूद अपने चिरंतन उदात्त मानवीय मूल्यों के संवाहक संतों के कारण यह भारतीय संस्कृति आज भी अजस्र रूप से प्रवाहित हो रही है। इस राजनीतिक पराभव काल में भारत के महान् संतों ने संपूर्ण भारत के गाँव-गाँव में हिंदू जनता को सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित रखा। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे स्वनामधन्य पूज्यपाद संतों व उनके जीवन चरित का उल्लेख किया गया है, जिनके कारण भारतीय संस्कृति आज भी संरक्षित है। गौरवशाली भारतीय संस्कृति के ऐसे रक्षक संतों का पुण्य स्मरण है यह पुस्तक, जिनका प्रेरणाप्रद जीवन हर हिंदू के धर्म-आस्था-श्रद्धा और विश्वास को बल एवं शक्ति देता है।

अनुक्रम

संदेश —Pgs. 7-9

आमुख —Pgs. 11

भारतीय सांस्कृतिक सातत्य एवं अक्षुण्णता में भारतीय साधु-संतों का योगदान इसलाम एवं ईसाई पंथी शासकों के कालखंड —Pgs. 15

आत्मसंस्कृतिर्वाव शिल्पानि —Pgs. 25

1. संत अखा —Pgs. 33

2. महात्मा अन्नमचार्य —Pgs. 34

3. गुरु अमरदास —Pgs. 34

4. गुरु अर्जुनदेव —Pgs. 35

5. महायोगी अरविंद —Pgs. 37

6. योगिनी आंडाल रंगनायकी —Pgs. 39

17. महात्मा कृष्णदास —Pgs. 54

18. महायोगी गोरखनाथ —Pgs. 55

19. संत गरीबदास तथा गरीब पंथ —Pgs. 61

20. संत गोविंददास —Pgs. 62

21. महात्मा योगीराज गंभीरनाथ —Pgs. 63

22. गुरु गोविंद सिंहजी —Pgs. 65

23. संत गुलाल साहब —Pgs. 81

24. संत गरीबदास —Pgs. 82

25. संत गदाधर भट्ट —Pgs. 82

26. गुरु घासीदास —Pgs. 83

7. गुरु अंगददेव —Pgs. 40

8. संत आपा साहब —Pgs. 41

9. संत उड़िया बाबा —Pgs. 42

10. उदासी संप्रदाय —Pgs. 43

11. महात्मा एकनाथ —Pgs. 43

12. महात्मा संत कबीरदासजी —Pgs. 44

13. महात्मा कुंभनदास —Pgs. 52

14. संत काठिया बाबा —Pgs. 52

15. संत कृष्णदास —Pgs. 53

16. बाबा कीनाराम —Pgs. 54

27. चैतन्य महाप्रभु —Pgs. 85

28. महात्मा चतुर्भुजदास —Pgs. 88

29. महात्मा चंद्रशेखरेंद्र भारती —Pgs. 88

30. महात्मा चरणदास —Pgs. 89

31. महात्मा छीत स्वामी —Pgs. 89

32. रसिक संत जयदेव —Pgs. 90

33. संत जगजीवन साहब —Pgs. 91

34. महात्मा ज्योतिबा फुले —Pgs. 91

35. संत भक्त जैतरामजी महाराज —Pgs. 92

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Justice Shambhu Nath SrivastavaJustice Shambhu Nath Srivastava

Justice Shambhu Nath Srivastava

न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकायुक्त पद पर कार्यरत रहे। उनका मूल वास स्थान ग्राम— श्रीनगर, तहसील—बैरिया, जिला— बलिया (उ.प्र.) है। संपूर्ण शिक्षा प्रयाग में हुई। बी.ए., एम.ए. (अर्थशास्त्र), एल-एल.बी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी कर 1 सितंबर, 1968 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत प्रारंभ की। 1994 में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य चुने गए। 14 फरवरी, 2002 को माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। आपने अनेक ऐतिहासिक एवं दूरगामी न्याय-निर्णयों से भारतीय न्यायपालिका के क्षेत्र में उज्ज्वल कीर्तिमान स्थापित किया है। एक याचिका के निर्णय में उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया था। प्रमुख लोकायुक्त, छत्तीसगढ़ के रूप में लगभग 500 से अधिक फैसले हिंदी में ही लिखवाए। उनकी एक पुस्तक ‘क्या हिंदी और प्रादेशिक भाषाएँ न्यायालयों की भाषा हो सकती हैं’ प्रकाशित होकर बहुचर्चित हुई। उनका समग्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व राष्ट्रसेवा को समर्पित रहा है।

अन्य प्रसिद्ध कृतियां।

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Bharat Ke Mahan Sant

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Sant Kathayen Marg Dikhayen

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Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant SANTON KE PRERAK PRASANG

हमारा देश संत-महात्माओं एवं ऋषिमुनियों का देश है। उनकी सांसारिक पदार्थों में आसक्ति नहीं होती। वे सिर्फ जीने भर के लिए जरूरी चीजों का सीमित मात्रा में उपभोग करते हैं। क्रोध; मान; माया और लोभ से संत का कोई प्रयोजन नहीं है। ऐसा सात्त्विक तपस्वी जीवन सबके लिए अनुकरणीय होता है।

Bharat Ke Mahan Sant

संतों की संस्कृति वेदना-संवेदना की संस्कृति है; यथार्थ की धरती पर अवतरित अध्यात्मभाव की संस्कृति है। घोर कष्‍टों; संकटों; अभावों और घोर अपमानों को सहकर दूसरों को उठाने; खड़ा करने और उन्हें सद्मार्ग दिखाने का महाकर्म है— संतों का जीवन।

Sant Kathayen Marg Dikhayen

समाज में व्यभिचार, हिंसा, ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि मनुष्यों के अंदर पलनेवाले इन दुर्भावों को नहीं रोका जा सकता, अवश्य रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यकता है ऐसी कथाओं की, जो व्यक्तियों को कम समय में एक बड़ी शिक्षा दें और उन्हें भँवर से बाहर निकालें।

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant

इस राजनीतिक पराभव काल में भारत के महान् संतों ने संपूर्ण भारत के गाँव-गाँव में हिंदू जनता को सामाजिक; सांस्कृतिक; धार्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित रखा। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे स्वनामधन्य पूज्यपाद संतों व उनके जीवन चरित का उल्लेख किया गया है; जिनके कारण भारतीय संस्कृति आज भी संरक्षित है।

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ASIN ‏ : ‎ B07H38PRBP
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (4 September 2018)
Language ‏ : ‎ Hindi
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Print length ‏ : ‎ 375 pages

Siddha Sant Aur Yogi: Journeying with Enlightened Sages and Yogis by Shambhuratna Tripathi (Hindi Edition)

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Siddha Sant Aur Yogi

97893909000159789390900015

संत परंपरा ही संपूर्ण विश्‍व को तमाम विघ्न-कष्‍टों से बचाकर वास्तविक विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है।

योगी का जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण होता है। वे अपना जीवन सैकड़ों वर्ष तक बनाए रख सकते हैं। परकायाप्रवेश द्वारा शरीर बदल सकते हैं, चिरयुवा रह सकते हैं और इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं। जीवित को मृत कर सकते हैं और मृत को जीवित कर सकते हैं। बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री बंकिमचंद्र चटर्जी के पिता श्री यादवचंद्र चटर्जी की मृत्यु कई बार हुई थी। जब वह श्मशान घाट ले जाए जाते थे, तो वहाँ एक महात्मा आविर्भूत होकर उनको पुनर्जीवन प्रदान कर देते थे। डॉ. अलेक्जेंडर कैनन को एक तिब्बती लामा ने तिब्बत आने का निमंत्रण दिया। वह अपने एक साधु मित्र के साथ तिब्बत पहुँचे। लामा के मंदिर के पहले एक चौड़ी, गहरी खाई थी, जिसे पार करना कठिन था। लामा ने अपने मंदिर में बैठे ही इनकी समस्या जान ली। उसने इनके पास एक दूत भेज दिया। इस दूत ने कुछ क्षण एक योग क्रिया दिखाई। उसके करने पर डॉ. कैनन और साधु खाई पार कर गए। जब वे लामा के पास पहुँचे, तो कफन में लपेटा हुआ एक मृत मनुष्य उनके सामने लाया गया। डॉक्टर साहब को उसकी परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि वह पूर्ण रूप से मृत व्यक्ति है। लामा के आदेश से व्यक्ति ने आँखें खोल दीं, उठकर खड़ा हो गया, लामा के पास चलकर गया और फिर मृत हो गया। लामा ने बताया कि यह मनुष्य सात वर्ष से मरा हुआ है और अभी सात वर्ष तक इसी प्रकार सुरक्षित मृतावस्था में रह सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवित किया जा सकता है। आश्चर्य की बात यह थी कि यह वही व्यक्ति था, जिसने लामा के दूत के रूप में डॉ. कैनन को योगक्रिया द्वारा खाई पार कराई थी।प्रसिद्ध योगी स्वामी रामजी ने लेखक को बताया था कि एक लामा ने उनके समक्ष ब्लेड से एक चींटे के तीन टुकड़े कर दिए और तीनों टुकड़े दूर-दूर रख दिए। बाद में मंत्र-शक्ति के बल से तीनों टुकड़े पास-पास आकर जुड़ गए और चींटा जीवित हो गया। उन्होंने योगियों की इच्छा-मृत्यु के भी कई अनुभव बताए थे। एक योगी ने पद्मासन की मुद्रा में अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिए और बिना किसी की सहायता के उनका शव उठकर गंगाजी की धारा में प्रवाहित हो गया था। अधिकांश योगी अपनी मृत्यु-तिथि और समय पहले से घोषित कर देते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस और विवेकानंदजी ने अपनी मृत्यु का समय पंचांग देखकर निश्चित किया था।सिद्ध योगियों का भौतिक शरीर अवश्य नष्ट हो जाता है; लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर से वे सदा विद्यमान रहते हैं तथा आवश्यकतानुसार भक्तों के समक्ष शरीर धारण करके प्रकट हो जाते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस देहावसान के बाद विवेकानंदजी, माँ शारदा तथा अन्य भक्तों के समक्ष प्रकट हुए थे। योगानंदजी के दिवंगत गुरु श्री युक्तेश्वरजी बंबई के एक होटल के कक्ष में प्रकट हो गए थे।

अनुक्रम

प्रस्तावना

जगद्गुरु शंकराचार्य (684-716 ई.)

गुरु नानक देव (1469-1539 ई.)

श्रीचंद्र महाराज (1494-1646 ई.)

संत ज्ञानेश्वर (1275-1296 ई.)

तैलंग स्वामी (1607-1887 ई.)

परमहंस रामकृष्ण देव (1836-1896 ई.)

स्वामी भास्करानंद (1833-1899 ई.)

मदाम ब्लावतस्की (1831-1891 ई.)

शिरडी के साईं बाबा (1856-1918 ई.)

स्वामी विशुद्धानंद (1853-1937 ई.)

गजानन महाराज (अज्ञात—1910 ई.)

नागा महाराज (अज्ञात—1936 ई.)

योगी गंभीरनाथ (अज्ञात—1918 ई.)

एनी बेसेंट (1847-1933 ई.)

माँ सारदा (1853-1920 ई.)

स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.)

स्वामी पुरुषोत्तमानंद (1879-1961 ई.)

स्वामी शिवानंद (1887-1963 ई.)

महर्षि रमण (1879-1950 ई.)

संत जलाराम (1856-1880 ई.)

स्वामी युक्तेश्वर गिरि (1885-1936 ई.)

उड़िया बाबा (1875-1948 ई.)

परमहंस योगानंद (1893-1952 ई.)

मेहेरबाबा (1894-1969 ई.)

श्रीमाँ (1878-1973 ई.)

माँ आनंदमयी (1896-1982 ई.)

गोपीनाथ कविराज (1887-1976 ई.)

बाबा नीमकरौली महाराज (अज्ञात—1973 ई.)

बाबा श्री सीतारामदास ओंकारनाथ (1892-1982 ई.)

बाबा राममंगलदास (1893-1984 ई.)

प्रभुपाद स्वामी भक्तिवेदांत (1896-1972 ई.)

सिद्ध योगी स्वामी राम (1925 ई.-1996 ई.)

देवरहा बाबा (अज्ञात 1990 ई.)

श्री सत् साईं बाबा (1926-2011 ई.)

महर्षि महेश योगी (1921-2008 ई.)

स्वामी सत्यानंद (1923-2009 ई.)

ध्यान-योग-चिकित्सक पांडेय दादा (1910-1992 ई.)

नारायण दास (बैकल बाबा) (अज्ञात-2001)

परिशिष्ट स्मरामि पुनः-पुनः

Shambhuratna TripathiShambhuratna Tripathi

Shambhuratna Tripathi

शम्भूरत्न त्रिपाठी भारतीय संस्कृति, समाज शास्त्र, नृतत्त्वशास्त्र, गांधीवाद, योग-अध्यात्म, साहित्यिक अनुसंधान और समीक्षा के सुपरिचित रचनाकार थे। विविध विषयों पर उनके पचास से अधिक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अनेक पत्रों व साहित्यिक ग्रंथमालाओं का संपादन किया और वैचारिक, दार्शनिक ग्रंथों का अनुवाद भी। उनके ग्यारह अकादमिक ग्रंथ सरकार द्वारा पुरस्कृत हुए हैं, जिन्हें विभिन्न विश्व-विद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में स्थान दिया है। पी-एच.डी. और डी.लिट. के बीसीयों छात्रों ने उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर साहित्यिक क्षेत्र में अपना मौलिक योगदान दिया। भारत सरकार के पारिभाषिक शब्दावली आयोग के सलाहकार समिति के सदस्य रहे। साप्ताहिक पत्रिका ‘मनु’ और ‘कंचनप्रभा’ मासिक के संपादक भी रहे। स्मृतिशेष : 10 अक्तूबर, 1988

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संतों की संस्कृति वेदना-संवेदना की संस्कृति है; यथार्थ की धरती पर अवतरित अध्यात्मभाव की संस्कृति है। घोर कष्‍टों; संकटों; अभावों और घोर अपमानों को सहकर दूसरों को उठाने; खड़ा करने और उन्हें सद्मार्ग दिखाने का महाकर्म है— संतों का जीवन।

Sant Kathayen Marg Dikhayen

समाज में व्यभिचार, हिंसा, ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि मनुष्यों के अंदर पलनेवाले इन दुर्भावों को नहीं रोका जा सकता, अवश्य रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यकता है ऐसी कथाओं की, जो व्यक्तियों को कम समय में एक बड़ी शिक्षा दें और उन्हें भँवर से बाहर निकालें।

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant

इस राजनीतिक पराभव काल में भारत के महान् संतों ने संपूर्ण भारत के गाँव-गाँव में हिंदू जनता को सामाजिक; सांस्कृतिक; धार्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित रखा। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे स्वनामधन्य पूज्यपाद संतों व उनके जीवन चरित का उल्लेख किया गया है; जिनके कारण भारतीय संस्कृति आज भी संरक्षित है।


ASIN ‏ : ‎ B09CNZQP5D
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (15 August 2021)
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