Girnar ke Siddha Yogi: Anantrai G. Rawal’s Tales of Spiritual Masters (Hindi Edition)

From the Publisher

Girnar ke Siddha Yogi

Girnar ke Siddha YogiGirnar ke Siddha Yogi

यह पुस्तक लंबे समय तक अध्यात्ममार्गियों का मार्गदर्शन करती रहेगी, इसमें कोई शंका नहीं है।

अनंत दास संघ शिविर में तथा संघ शिक्षा वर्ग में ‘बौद्धिक कक्ष’ में सेवारत होने के कारण संघ साधना के तपस्वी और ऋषितुल्य प्रचारकजी के संग रहे हैं। राष्ट्रभावना के संस्कार उनमें दृढ़ हो गए। महापुरुषों-तपस्वियों के जीवन चरित्रों का वाचन, लेखन, चिंतन और पूर्वाश्रम के संस्कारों के कारण भी वे कभी-कभी स्वयं का जूनागढ़ गिरनार के प्रति अतिशय आकर्षण होना बताते हैं। समय मिलते ही वे यदा-कदा गिरि-कंदराओं में जाकर साधु-संतों के संपर्क में रहते थे; वे गिरनार के प्रति गैबी-प्रेरणा का तीव्र आकर्षण बताते थे और सच ही सेवानिवृत्ति के बाद अनंत दादा ने गिरनार का पथ पकड़कर, गिरनार में न करने वाले श्रेष्ठ तपस्वियों, आदर्श साधु-संतों और आश्रमों में रहकर तप, साधना, विचार, वाचन, चिंतन, अनुभव एवं चमत्कारी अनुभूतियाँ प्राप्त की हैं। उनके परिणामस्वरूप और किसी गैबी शक्ति की प्रेरणा से ‘अमृत फल स्वरूप’, ‘गिरनार के सिद्ध योगी’ पुस्तक का सृजन हुआ है। यथार्थ में, पुस्तक में ‘गिरनार’ के सूक्ष्म स्वरूप का दर्शन करवाकर सभी आध्यात्ममार्गियों की श्रद्धा को पुष्ट किया है और सद्गुरु चरित्र का सटीक वर्णन करके समाज में साधु-संतों की सुंदर पहचान करवाई है। Anantrai G. RawalAnantrai G. Rawal

अनंतराय जी. रावल

अनंतराय जी. रावल का जन्म 26 जून, 1939 को जूनागढ़ जिले के धावागीर गाँव में हुआ। उनके गाँव के लोग प्यार से उन्हें ‘अनुभाई’ कहते हैं। धावागीर गाँव के साधारण मध्यम परिवार में पैदा हुए अनंतरायजी का बड़ा संयुक्त परिवार था। परिवार में चार भाई और पाँच बहनें। कक्षा चार तक अपने गाँव में ही शिक्षा ली। बाद में आगे की शिक्षा वेरावल में और सोमनाथ कॉलेज से क्च्न की डिग्री ली। पोरबंदर के कॉलेज से बी.एड. की डिग्री ली। 30 वर्ष तक अध्यापन कार्य। शिक्षक की पहली नौकरी अमरेली जिला के खांभा गाँव में। वहीं पर कक्षा 8 से कक्षा 12 तक के छात्रों को पढ़ाया। जूनागढ़ का गिरनार पर्वत सबसे प्राचीन पर्वत माना जाता है और शताब्दियों से गिरनार ऋषियों और सिद्ध योगियों की साधना स्थली रहा है। जूनागढ़ के प्रति स्वाभाविक लगाव होने के कारण ऐसे सिद्ध योगियों से लेखक का संपर्क रहा। उन्होंने अपने अनुभवों को इस पुस्तक में सँजोकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है।

Rahasyamaya Girnar (hindi) by Anantrai G. Rawal

Rahasyamaya Girnar (hindi) by Anantrai G. RawalRahasyamaya Girnar (hindi) by Anantrai G. Rawal

अघोर परंपरा के कुछ रहस्य हमें चमत्कार जैसे लगेंगे, मगर वे चमत्कार नहीं वरन् वास्तव में सिद्ध साधुओं के अध्यात्म-अघोर शक्ति का प्रगटीकरण है

अध्यात्म की कोख में पली-बढ़ी, अघोर परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। अघोर परंपरा आज भी पूर्ण चेतना के साथ विद्यमान है। उसकी गूढ़ बातों में अनेक रहस्य छुपे होते हैं। उसके मंत्र-तंत्र के मूल रहस्यों में अनेकानेक गूढ़ार्थ छुपे होते हैं, जो साधु-परंपरा को एक अलग ही ऊँचाई पर रखते हैं। ‘रहस्यमय गिरनार’ पुस्तक इसी अघोर परंपरा के अध्यात्मपूर्ण रहस्य के नजदीक हमें ले जाती है। अध्यात्म क्षेत्र में हमारी अघोर परंपरा में आज भी सैकड़ोें सिद्ध साधु-योगी अपने तपोबल से एक चुंबकीय प्रभाव पैदा करते रहते हैं। हमारी इस अघोर परंपरा में कैसी अद्भुत शक्ति छिपी है, यह पढ़कर पाठक अचंभित हो जाएँगे। अघोर परंपरा के अनेक अप्रकट रहस्य इस पुस्तक द्वारा हमारे सामने प्रकट होंगे। कुछ गुप्त बातें साधु परंपरा की मर्यादा में रहकर इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आती हैं। अघोर परंपरा के कुछ रहस्य हमें चमत्कार जैसे लगेंगे, मगर वे चमत्कार नहीं वरन् वास्तव में सिद्ध साधुओं के अध्यात्म-अघोर शक्ति का प्रगटीकरण है— यह बात कुछ लोगों की समझ के परे है। पाठकों को योग क्रिया, ध्यान, समाधि इत्यादि परंपरा की अनुभूति पुस्तक पढ़ते समय होती रहेगी। भारत के प्राण इस संस्कृति और अध्यात्म शक्ति में छिपे हैं और ऐसी अध्यात्म परंपरा ने ही तो भारत को मृत्युंजयी रखा है—यह गौरवबोध करानेवाली रोचक-रोमांचक कृति|

Other Recommended Books

Girnar ke Siddha Yogi by Anantrai G. Rawal

Girnar ke Siddha Yogi by Anantrai G. Rawal

Dhyan by Shameem Khan

Dhyan by Shameem Khan

DHYAN KI VIDHIYAN by Mahesh Sharma

DHYAN KI VIDHIYAN by Mahesh Sharma

Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger

Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger Girnar ke Siddha Yogi by Anantrai G. Rawal

अनंत दास संघ शिविर में तथा संघ शिक्षा वर्ग में ‘बौद्धिक कक्ष’ में सेवारत होने के कारण संघ साधना के तपस्वी और ऋषितुल्य प्रचारकजी के संग रहे हैं। राष्ट्रभावना के संस्कार उनमें दृढ़ हो गए। महापुरुषों-तपस्वियों के जीवन चरित्रों का वाचन; लेखन; चिंतन और पूर्वाश्रम के संस्कारों के कारण भी वे कभी-कभी स्वयं का जूनागढ़ गिरनार के प्रति अतिशय आकर्षण होना बताते हैं। समय मिलते ही वे यदा-कदा गिरि-कंदराओं में जाकर साधु-संतों के संपर्क में रहते थे; वे गिरनार के प्रति गैबी-प्रेरणा का तीव्र आकर्षण बताते थे और सच ही सेवानिवृत्ति के बाद अनंत दादा ने गिरनार का पथ पकड़कर; गिरनार में निवास करने वाले श्रेष्ठ तपस्वियों; आदर्श साधु-संतों और आश्रमों में रहकर तप; साधना; विचार; वाचन; चिंतन; अनुभव एवं चमत्कारी अनुभूतियाँ प्राप्त की हैं। उनके परिणामस्वरूप और किसी गैबी शक्ति की प्रेरणा से ‘अमृत फल स्वरूप’; ‘गिरनार के सिद्ध योगी’ पुस्तक का सृजन हुआ है।

Dhyan by Shameem Khan

ध्यान एक साधारण, लेकिन शक्तिरशाली तकनीक है, जो आपके मस्ति ष्कं को शांत और स्थि र रखती है। आपको केवल यह करना है कि आप अपनी आँखें बंद करके बैठ जाएँ और गहरा आराम अनुभव करें। शुरुआत में थोड़ी कठिनाई होगी, मन यहाँ-वहाँ भटकेगा, लेकिन दृढ-इच्छाबशक्ति से आप मन को काबू में कर लेंगे।

DHYAN KI VIDHIYAN by Mahesh Sharma

ध्यान क्या होता है? और ध्यान करने से क्या होगा? हालाँकि इस छोटे से प्रश्न का उत्तर इतना बड़ा और इतना विराट है कि उसे एक छोटे से अंश में समाहित करना बड़ा गलत होगा, लेकिन फिर भी जो बिल्कुल नया साधक है, योग में बिल्कुल ही नया है, जो बिल्कुल नया प्रशिक्षु ध्यानी है, उसके लिए केवल इतना कहा जा सकता है कि ध्यान का तात्पर्य है—अपने अस्तित्व का बोध करना, अर्थात् अस्तित्व का ज्ञान करना और चारों तरफ जो अस्तित्व विचर रहा है प्रतिपल, उसका बोध करना।

Patanjali Yog Sutra by B.K.S. Iyenger

योगसूत्र एक दर्शन है, जो खोज करनेवालों को (आत्मा) पुरुष का रूप प्रत्यक्ष तौर पर दिखा देता है। जिस प्रकार एक दर्पण किसी के रूप को दिखाता है, उसी प्रकार योगसूत्रों के अनुसार पतंजलि की बताई योग-साधना करने से व्यक्ति को अपने अंदर एक महान् ऋषि जैसे गुण दिखाई पड़ते हैं। योग एक विषय के रूप में किसी महासागर जितना विशाल है। व्यक्ति इसमें जितनी गहराई तक उतरता है, उसे गूढ़ रहस्यों का उतना ही ज्ञान होता जाता है, जो किसी के व्यक्तिगत ज्ञान से परे (अकल्पित ज्ञान) होता है। यह किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क की बुद्धि को और आध्यात्मिक हृदय के ज्ञान को धारदार बनाता है। इसका अभ्यास करनेवाले अपने अंदर सृजनात्मकता का विकास कर पाते हैं। आप अपने दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ विश्वास के साथ योग का अभ्यास करें और सच्चे योगी तथा सच्चा मनुष्य बनने का सुफल प्राप्त करें। जीवन को सार्थक दिशा देनेवाले सूत्रों का संकलन, जो आपके लिए स्वास्थ्य और सफलता के द्वार खोलेंगे|


ASIN ‏ : ‎ B07Y5DVN78
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (20 September 2019)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 769 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 310 pages

Siddha Sant Aur Yogi: Journeying with Enlightened Sages and Yogis by Shambhuratna Tripathi (Hindi Edition)

From the Publisher

Siddha Sant Aur Yogi

97893909000159789390900015

संत परंपरा ही संपूर्ण विश्‍व को तमाम विघ्न-कष्‍टों से बचाकर वास्तविक विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है।

योगी का जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण होता है। वे अपना जीवन सैकड़ों वर्ष तक बनाए रख सकते हैं। परकायाप्रवेश द्वारा शरीर बदल सकते हैं, चिरयुवा रह सकते हैं और इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं। जीवित को मृत कर सकते हैं और मृत को जीवित कर सकते हैं। बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री बंकिमचंद्र चटर्जी के पिता श्री यादवचंद्र चटर्जी की मृत्यु कई बार हुई थी। जब वह श्मशान घाट ले जाए जाते थे, तो वहाँ एक महात्मा आविर्भूत होकर उनको पुनर्जीवन प्रदान कर देते थे। डॉ. अलेक्जेंडर कैनन को एक तिब्बती लामा ने तिब्बत आने का निमंत्रण दिया। वह अपने एक साधु मित्र के साथ तिब्बत पहुँचे। लामा के मंदिर के पहले एक चौड़ी, गहरी खाई थी, जिसे पार करना कठिन था। लामा ने अपने मंदिर में बैठे ही इनकी समस्या जान ली। उसने इनके पास एक दूत भेज दिया। इस दूत ने कुछ क्षण एक योग क्रिया दिखाई। उसके करने पर डॉ. कैनन और साधु खाई पार कर गए। जब वे लामा के पास पहुँचे, तो कफन में लपेटा हुआ एक मृत मनुष्य उनके सामने लाया गया। डॉक्टर साहब को उसकी परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि वह पूर्ण रूप से मृत व्यक्ति है। लामा के आदेश से व्यक्ति ने आँखें खोल दीं, उठकर खड़ा हो गया, लामा के पास चलकर गया और फिर मृत हो गया। लामा ने बताया कि यह मनुष्य सात वर्ष से मरा हुआ है और अभी सात वर्ष तक इसी प्रकार सुरक्षित मृतावस्था में रह सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवित किया जा सकता है। आश्चर्य की बात यह थी कि यह वही व्यक्ति था, जिसने लामा के दूत के रूप में डॉ. कैनन को योगक्रिया द्वारा खाई पार कराई थी।प्रसिद्ध योगी स्वामी रामजी ने लेखक को बताया था कि एक लामा ने उनके समक्ष ब्लेड से एक चींटे के तीन टुकड़े कर दिए और तीनों टुकड़े दूर-दूर रख दिए। बाद में मंत्र-शक्ति के बल से तीनों टुकड़े पास-पास आकर जुड़ गए और चींटा जीवित हो गया। उन्होंने योगियों की इच्छा-मृत्यु के भी कई अनुभव बताए थे। एक योगी ने पद्मासन की मुद्रा में अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिए और बिना किसी की सहायता के उनका शव उठकर गंगाजी की धारा में प्रवाहित हो गया था। अधिकांश योगी अपनी मृत्यु-तिथि और समय पहले से घोषित कर देते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस और विवेकानंदजी ने अपनी मृत्यु का समय पंचांग देखकर निश्चित किया था।सिद्ध योगियों का भौतिक शरीर अवश्य नष्ट हो जाता है; लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर से वे सदा विद्यमान रहते हैं तथा आवश्यकतानुसार भक्तों के समक्ष शरीर धारण करके प्रकट हो जाते हैं। श्रीरामकृष्ण परमहंस देहावसान के बाद विवेकानंदजी, माँ शारदा तथा अन्य भक्तों के समक्ष प्रकट हुए थे। योगानंदजी के दिवंगत गुरु श्री युक्तेश्वरजी बंबई के एक होटल के कक्ष में प्रकट हो गए थे।

अनुक्रम

प्रस्तावना

जगद्गुरु शंकराचार्य (684-716 ई.)

गुरु नानक देव (1469-1539 ई.)

श्रीचंद्र महाराज (1494-1646 ई.)

संत ज्ञानेश्वर (1275-1296 ई.)

तैलंग स्वामी (1607-1887 ई.)

परमहंस रामकृष्ण देव (1836-1896 ई.)

स्वामी भास्करानंद (1833-1899 ई.)

मदाम ब्लावतस्की (1831-1891 ई.)

शिरडी के साईं बाबा (1856-1918 ई.)

स्वामी विशुद्धानंद (1853-1937 ई.)

गजानन महाराज (अज्ञात—1910 ई.)

नागा महाराज (अज्ञात—1936 ई.)

योगी गंभीरनाथ (अज्ञात—1918 ई.)

एनी बेसेंट (1847-1933 ई.)

माँ सारदा (1853-1920 ई.)

स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.)

स्वामी पुरुषोत्तमानंद (1879-1961 ई.)

स्वामी शिवानंद (1887-1963 ई.)

महर्षि रमण (1879-1950 ई.)

संत जलाराम (1856-1880 ई.)

स्वामी युक्तेश्वर गिरि (1885-1936 ई.)

उड़िया बाबा (1875-1948 ई.)

परमहंस योगानंद (1893-1952 ई.)

मेहेरबाबा (1894-1969 ई.)

श्रीमाँ (1878-1973 ई.)

माँ आनंदमयी (1896-1982 ई.)

गोपीनाथ कविराज (1887-1976 ई.)

बाबा नीमकरौली महाराज (अज्ञात—1973 ई.)

बाबा श्री सीतारामदास ओंकारनाथ (1892-1982 ई.)

बाबा राममंगलदास (1893-1984 ई.)

प्रभुपाद स्वामी भक्तिवेदांत (1896-1972 ई.)

सिद्ध योगी स्वामी राम (1925 ई.-1996 ई.)

देवरहा बाबा (अज्ञात 1990 ई.)

श्री सत् साईं बाबा (1926-2011 ई.)

महर्षि महेश योगी (1921-2008 ई.)

स्वामी सत्यानंद (1923-2009 ई.)

ध्यान-योग-चिकित्सक पांडेय दादा (1910-1992 ई.)

नारायण दास (बैकल बाबा) (अज्ञात-2001)

परिशिष्ट स्मरामि पुनः-पुनः

Shambhuratna TripathiShambhuratna Tripathi

Shambhuratna Tripathi

शम्भूरत्न त्रिपाठी भारतीय संस्कृति, समाज शास्त्र, नृतत्त्वशास्त्र, गांधीवाद, योग-अध्यात्म, साहित्यिक अनुसंधान और समीक्षा के सुपरिचित रचनाकार थे। विविध विषयों पर उनके पचास से अधिक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अनेक पत्रों व साहित्यिक ग्रंथमालाओं का संपादन किया और वैचारिक, दार्शनिक ग्रंथों का अनुवाद भी। उनके ग्यारह अकादमिक ग्रंथ सरकार द्वारा पुरस्कृत हुए हैं, जिन्हें विभिन्न विश्व-विद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में स्थान दिया है। पी-एच.डी. और डी.लिट. के बीसीयों छात्रों ने उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर साहित्यिक क्षेत्र में अपना मौलिक योगदान दिया। भारत सरकार के पारिभाषिक शब्दावली आयोग के सलाहकार समिति के सदस्य रहे। साप्ताहिक पत्रिका ‘मनु’ और ‘कंचनप्रभा’ मासिक के संपादक भी रहे। स्मृतिशेष : 10 अक्तूबर, 1988

============================================================================

Other Recommended books

SANTON KE PRERAK PRASANG

SANTON KE PRERAK PRASANG

Bharat Ke Mahan Sant

Bharat Ke Mahan Sant

Sant Kathayen Marg Dikhayen

Sant Kathayen Marg Dikhayen

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant SANTON KE PRERAK PRASANG

हमारा देश संत-महात्माओं एवं ऋषिमुनियों का देश है। उनकी सांसारिक पदार्थों में आसक्ति नहीं होती। वे सिर्फ जीने भर के लिए जरूरी चीजों का सीमित मात्रा में उपभोग करते हैं। क्रोध; मान; माया और लोभ से संत का कोई प्रयोजन नहीं है। ऐसा सात्त्विक तपस्वी जीवन सबके लिए अनुकरणीय होता है।

Bharat Ke Mahan Sant

संतों की संस्कृति वेदना-संवेदना की संस्कृति है; यथार्थ की धरती पर अवतरित अध्यात्मभाव की संस्कृति है। घोर कष्‍टों; संकटों; अभावों और घोर अपमानों को सहकर दूसरों को उठाने; खड़ा करने और उन्हें सद्मार्ग दिखाने का महाकर्म है— संतों का जीवन।

Sant Kathayen Marg Dikhayen

समाज में व्यभिचार, हिंसा, ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि मनुष्यों के अंदर पलनेवाले इन दुर्भावों को नहीं रोका जा सकता, अवश्य रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यकता है ऐसी कथाओं की, जो व्यक्तियों को कम समय में एक बड़ी शिक्षा दें और उन्हें भँवर से बाहर निकालें।

Bharatiya Sanskriti ke Rakshak Sant

इस राजनीतिक पराभव काल में भारत के महान् संतों ने संपूर्ण भारत के गाँव-गाँव में हिंदू जनता को सामाजिक; सांस्कृतिक; धार्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित रखा। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे स्वनामधन्य पूज्यपाद संतों व उनके जीवन चरित का उल्लेख किया गया है; जिनके कारण भारतीय संस्कृति आज भी संरक्षित है।


ASIN ‏ : ‎ B09CNZQP5D
Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan (15 August 2021)
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 1609 KB
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 477 pages