


HATHYOGA: SWAROOP EVAM SADHNA: YOGI ADITYANATH’s Guide to Physical and Spiritual Wellness (Hindi Edition)




ASIN : B07Q5N2NKB
Publisher : Prabhat Prakashan (30 April 2019)
Language : Hindi
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Print length : 202 pages
make proper use of life #lifestyle #lifelessons #life #swaminarayan #vadtal #spirituality #hindu
Sabhi Ke Liye Yoga: B.K.S. Lyengar’s Path to Holistic Wellness (Hindi Edition)
Sabhi Ke Liye Yoga by B.K.S. Iyengar


योग सत्र में मुख्य रूप से व्यायाम, ध्यान और योग आसन शामिल होते हैं जो विभिन्न मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।
योग - अभ्यास का एक प्राचीन रूप जो भारतीय समाज में हजारों साल पहले विकसित हुआ था और उसके बाद से लगातार इसका अभ्यास किया जा रहा है। इसमें किसी व्यक्ति को सेहतमंद रहने के लिए और विभिन्न प्रकार के रोगों और अक्षमताओं से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यायाम शामिल हैं। यह ध्यान लगाने के लिए एक मजबूत विधि के रूप में भी माना जाता है जो मन और शरीर को आराम देने में मदद करता है। दुनियाभर में योग का अभ्यास किया जा रहा है। विश्व के लगभग 2 अरब लोग एक सर्वेक्षण के मुताबिक योग का अभ्यास करते हैं।
योग के फायदे
मांसपेशियों के लचीलेपन में सुधारशरीर के आसन और एलाइनमेंट को ठीक करता हैबेहतर पाचन तंत्र प्रदान करता हैआंतरिक अंग मजबूत करता हैअस्थमा का इलाज करता हैमधुमेह का इलाज करता हैदिल संबंधी समस्याओं का इलाज करने में मदद करता हैत्वचा के चमकने में मदद करता हैशक्ति और सहनशक्ति को बढ़ावा देता हैएकाग्रता में सुधारमन और विचार नियंत्रण में मदद करता हैचिंता, तनाव और अवसाद पर काबू पाने के लिए मन शांत रखता है
ASIN : B072X9Z8Q2
Publisher : Prabhat Prakashan (1 January 2015)
Language : Hindi
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Print length : 344 pages
Hatha Yoga Pradipika: A Comprehensive Guide to Yoga Philosophy and Spiritual Wellness
ASIN : B08Q8DTHBQ
Publisher : Good Press (8 December 2020)
Language : English
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Print length : 69 pages
Sampooran Yog: Attaining Complete Yoga and Wellness (Hindi Edition)
Sampooran Yog by Swami Vivekanand


स्वामी विवेकानंद जी की इन ग्रंथो ने युवा को भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास से परिचय कराया. जिसके बाद सभी युवा पीढ़ी के अन्दर एक नई चेतना उत्पन्न हुई
भारतवर्ष में जितने वेदमतानुयायी दर्शनशास्त्र हैं, उन सबका एक ही लक्ष्य है, और वह है—पूर्णता प्राप्त करके आत्मा को मुक्त कर लेना। इसका उपाय है योग। ‘योग’ शब्द बहुभावव्यापी है। सांख्य और वेदांत उभय मत किसी-न-किसी प्रकार से योग का समर्थन करते हैं।
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Karmayog
कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है—करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाए, तो इसका अर्थ कभी-कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परंतु कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है।
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Rajyog
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे।
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Bhaktiyoga
निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को ‘भक्तियोग’ कहते हैं। इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है।भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।’’
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Gyanyoga
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि एक ईश्वर को पूजनेवाले तथा एक धर्म में विश्वास करनेवाले लोग जिस दृढ़ता और शक्ति से एक-दूसरे का साथ देते हैं, वह एक ही वंश के लोगों की बात ही क्या, भाई-भाई में भी देखने को नहीं मिलता। धर्म के प्रादुर्भाव को समझने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। अब तक हमें जितने प्राचीन धर्मों का ज्ञान है, वे सब एक यह दावा करते हैं कि वे सभी अलौकिक हैं, मानो उनका उद्भव मानव-मस्तिष्क से नहीं बल्कि उस स्रोत से हुआ है, जो उसके बाहर है।




‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। जब मनुष्य इसे प्राप्त कर लेता है, तो सभी उसके प्रेमपात्र बन जाते हैं। वह किसी से घृणा नहीं करता; वह सदा के लिए संतुष्ट हो जाता है।
Gyanyogaमानव-जाति के भाग-निर्माण में जितनी शक्तियों ने योगदान दिया है और दे रही हैं, उन सब में धर्म के रूप में प्रगट होनेवाली शक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है। सभी सामाजिक संगठनों के मूल में कहीं-न-कहीं यही अद्भुत शक्ति काम करती रही है ।
Karmayogकर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है—करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परंतु कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञानलाभ है। प्राच्य दर्शनशास्त्र हमारे सम्मुख एकमात्र यही लक्ष्य रखता है।
Rajyogराजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है।


स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था।इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवीजी धामर्क विचारों की महिला थीं। बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुद्ध के और नटखट थे। रिवार के धामर्क एवं आध्यात्मक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में बचपन से ही धमर् एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए।पाँच वर्ष की आयु में ही बड़ों की तरह सोचने, व्यवहार करनेवाला तथा अपने विवेक से हर जानकारी की विवेचना करनेवाला यह विलक्षण बालक सदैव अपने आस-पास घटित होनेवाली घटनाओं के बारे में सोचकर स्वयं निष्कर्ष निकालता रहता था। नरेंद्र ने श्रीरामकृष्णदेव को अपना गुरु मान लिया था।उसके बाद एक दिन उन्होंने नरेंद्र को संन्यास की दीक्षा दे दी। उसके बाद गुरु ने अपनी संपूर्ण शक्तियाँ अपने नवसंन्यासी शिष्य स्वामी विवेकानंद को सौंप दीं, ताकि वह विश्व-कल्याण कर भारत का नाम गौरवान्वत कर सके।4 जुलाई, 1902 को यह महान् तपस्वी अपनी इहलीला समाप्त कर परमात्मा में विलीन हो गया। Customer Reviews Price
ASIN : B08FHZK5YH
Publisher : Prabhat Prakashan (8 August 2020)
Language : Hindi
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Print length : 551 pages